बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं

बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं | शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था

बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं

बाल विकास की अवस्थाओं में शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था आती है। CTET UPTET STET की परीक्षा में बाल विकास की विभिन्न आवस्थाएं (Stages of Child Development) से प्रश्न पूछा ही जाता है। जानेंगे बच्चे के विकास में विभिन्न अवस्थाओं में होने वाले परिवर्तन और अध्ययन।

बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं (Stages of Child Development) : डा0 अरनेस्ट जोन्स ने बाल विकास की इन चार अवस्थाओं में के बारे में वर्णन किया है-

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  • शैशवावस्था (जन्म से 5 वर्ष या 6 वर्ष तक)
  • बाल्यावस्था (6 वर्ष से 11 वर्ष या 12 वर्ष तक)
  • किशोरावस्था (12 वर्ष से 18 वर्ष तक)
  • प्रौढ़ावस्था (18 वर्ष के बाद की अवस्था)

शैशवावस्था

शैशवावस्था को बालक के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काल भी कहा जाता है। और यह बाल विकास की प्रथम अवस्था होती है। इसका समय जन्म से लेकर 6 वर्ष तक का होता है और शिशु को अंग्रेजी में Infancy भी कहते है यह एक लैटिन भाषा के Inferi शब्द से मिलकर बना है तथा इसका शाब्दिक अर्थ होता है’बोलने के अयोग्य’ होता है। आप पढ़ रहें हैं बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं

न्यूमैन के अनुसार – “5-वर्ष तक की अवस्था शरीर और मस्तिष्क के लिए बड़ी ग्रहणशील रहती है” यानि कि इस अवस्था में बालक को जो कुछ भी सिखाया जाता है उसका असर तुरंत बालक पर दिखाई पड़ता है। महान मनोविश्लेषण वादियों ने भी शैशवावस्था पर विशेष ध्यान दिया है।

 

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बाल विकास की महत्वपूर्ण परिभाषाएं

क्रो एण्ड क्रो– “बीसवीं शताब्दी बालक की शाताब्दी होती है।”

फ्रायड के अनुसार – “मनुष्य को जो कुछ भी बनना होता है वह प्रारम्भ के चार पाँच वर्षों में बन जाता है, यह परिभाषा फ्रायड की है।

एडलर के अनुसार – “शैशवावस्था द्वारा जीवन का पूरा क्रम निश्चित होता है.

गुडएनफ के शब्दों में “व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है, उसका आधा लगभग तीन वर्ष की आयु तक हो जाता है.

शैशवावस्था की विशेषताएं (Stages of Child Development in Hindi)

इस अवस्था में मानसिक विकास की गति तीव्र होती है। वैलेंटाइन ने शैशवावस्था के बारे में कहा है ‘शैशवावस्था सीखने का आदर्श काल है’ Stages of Child Development (बाल विकास की आवस्थाएं)

  • मानसिक विकास तेजी से
  • शारीरिक विकास तेजी से
  • सीखने की प्रक्रियों में तेजी
  • दोहराने की प्रवृत्ति
  • परनिर्भरता (दूसरों पर निर्भर)
  • जिज्ञासा प्रवृत्ति (जिज्ञासु)
  • स्वप्रेम की भावना (खुद से प्रेम करता है)
  • काम प्रवृत्ति की भावना का विकास

ध्यान योग्य बातें शैशवावस्था में बालक के शारीरिक व मानसिक विकास के आधार पर ही उसे शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। बालक को शिक्षा प्रदान करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए-

शारीरिक विकास की तेजी से होने के कारण माता,पिता और अध्यापक को उसके स्वास्थ का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए आवशयकता  अनुसार बालक को पौष्टिक और संतुलित भोजन के साथ- साथ चिकित्सक व्यवस्था का भी ध्यान रखना चाहिए।

बच्चे अपने आस-पास के वातावरण से प्रभावित होते है। यदि उनका वातावरण अच्छा हो तो वह अच्छी आदतों को सीख सकते है।

बालक को स्वयं करके सीखने का अवसर प्रदान करना महत्वपूर्ण माना गया है। क्योकि अपने देखा होगा प्रैक्टिकल ज्ञान या करके सीखा हुआ ज्ञान अधिक समय के लिये स्थायी रहता है। और बालक किसी काम को करके सीखने में अधिक आनंद का अनुभव भी प्राप्त करता है अतः ध्यान रखना जरूरी है।

 

बाल्यावस्था

कोल व ब्रूस– “बाल्यावस्था जीवन का अनोखा काल है. वही किलपैट्रिक ने बाल्यावस्था को प्रतिद्वन्दता की अवस्था कहा है. बालविकास में शैशवावस्था के बाद का समय बाल्यावस्था का आरम्भ होता है। इसे मनोवैज्ञानिकों ने जीवन का अनोखा काल भी कहा जाता है। यह बालक के विकास की दूसरी अवस्था है। यह अवस्था छः वर्ष से लेकर बारह वर्ष तक होती है।

रॉस ने – बाल्यावस्था को मिथ्या परिपक्वता का काल कहा है.

 

बालक इसी अवस्था में ही अपनी प्रारम्भिक विद्यालय की शिक्षा शुरू करता है। और इस समय में बालक के अंदर स्फूर्ति अधिक होती है। इस अवस्था (Stages of Child Development) में बालक खेलकूद, उछल-कूद में अधिक लगे होने से उसके कपड़े गंदे होते है और वह लापरवाह होता है। इस काल में बालक-बालिकाओं में सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने की क्षमता अधिक होती है। और वे अपना समूह बना कर रहना पसंद करते हैं।

 

बाल्यावस्था के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मनोवैज्ञानिक ब्लेयर जोन्स सिम्पसन ने कहा है –

शैक्षिक दृष्टिकोण से जीवन चक्र में बाल्यावस्था से अधिक महत्वपूर्ण और कोई अवस्था नहीं है।”

जिस अध्यापक ने इस अवस्था में बालकों को शिक्षा देता है, उन्हें चाहिए कि बालक के आधारभूत आवश्यकताएँ एवं उनकी समस्याओं और परिस्थितियों का ध्यान रखे।

बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं
बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं

 

बाल्यावस्था की विशेषताएं (Stages of Child Development)

बाल्यावस्था में विकास की गति पहले से धीमी होती है और शारीरिक तथा मानसिक में विकास में स्थिरता बनी रहती है। इस काल की शारीरिक व मानसिक स्थिरता बाल्यावस्था की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है ।

 

बालक शैशवावस्था की तरह इस अवस्था में (बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं) बालक अपने शारीरिक एवं मानसिक कार्यों के लिए किसी दूसरे पर आश्रित नहीं होता है। बाल्यावस्था में वह व्यक्तिगत कार्य स्वयं करता है जैसे- नहाना, ब्रश करना, कपड़ा धोना,स्कूल जाने की तैयारी आदि।

इस समय बालकों में प्रतिस्पर्धा की भावना का विकास हो जाता है। बालक अपने भाई-बहन के झगड़ा करने लगता है और प्यार भी करता है.

बालक इस अवस्था में अपना अधिक से अधिक समय दूसरे बालकों के साथ व्यतीत करते है। और बालकों में सहयोग, सहनशीलता, नैतिकता आदि गुणों का विकास अब पूरी तरह से हो चूका है।

बाल्यावस्था में बालक का दृष्टिकोण यर्थातवादी भी होता है। इस अवस्था में बालक धीरे धीरे कल्पना जगत से वास्तविक जगत में प्रवेश करने लगते है।

इस अवस्था में बालक में अनुकरण की प्रवृति का सबसे अधिक विकास होता है। इसके अलावा इस आयु में बालक झूठ बोलना तथा चोरी करना भी सीख जाते है। आप बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं (Stages of Child Development in hindi) पढ़ रहें हैं.

इस अवस्था में बालक उचित और अनुचित में अंतर समझने लगता है। और बालक सामाजिक व पारिवारिक व्यवहार के लिए अपने भावनाओं का दमन और संवेगो पर नियंत्रण करना पूरी तरह से सीख जाता है।

 

बालक की शिक्षा को निर्धारित करते समय निम्न बातों का ध्यान देना चाहिए  –

अरस्तु ने कहा है ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। अतः बालक के मानसिक विकास के लिए शारीरिक विकास पर विशेष ध्यान रखना भी आवश्यक है। और बालकों के अच्छे स्वास्थ के लिए उन्हें संतुलित और पौष्टिक भोजन का ध्यान भी देना चाहिए। तथा बालकों की क्रियाशीलता बनाये रखने के लिए विद्यालय में खेल-कूद का उत्तम प्रबंध करना चाहिए।

इसके साथ ही बालकों के भाषा विकास पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। उन्हें वार्तालाप करने, कहानी सुनाने,पत्र-पत्रिकाएँ पढ़ने,वाद-विवाद करने,भाषण देने तथा कविता पढ़ाने पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।

 

किशोरावस्था

बालक के विकास में बाल्यावस्था के बाद किशोरावस्था प्रारम्भ होती है। और प्रौढ़ावस्था के प्रारम्भ होने तक चलती है। इसे अवस्था को जीवन का सबसे कठिन काल भी कहा जाता है। इस अवस्था का समय 12 वर्ष से 18 वर्ष तक का होता है। किशोरावस्था को अंग्रेजी में Adolescence कहते है। Adolescence एक लैटिन भाषा के शब्द Adolescere से बना है जिसका अर्थ “परिपक्वता की ओर बढ़ना” है।

हम कह सकते है की किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमे बालक परिपक्वता की ओर बढ़ता है। इस अवस्था में हड्डियों में दृढ़ता आती है और अत्यधिक भूख लगता है। किन्तु बालकों की अपेक्षा बालिकाओं में किशोरावस्था ( बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं ) का आरम्भ दो वर्ष पूर्व हो जाता है।

मनोवैज्ञानिक स्टनले हाल ने ‘किशोरावस्था को बड़े संघर्ष,तूफ़ान तथा विरोध की अवस्था कहा है हालांकि इस आयु में बालक में शारीरिक रूप से हो रहे परिवर्तन से वह हैरान तथा परेशान रहता है। इसलिए यह जीवन का सबसे कठिन काल है।

किशोरावस्था की महत्वपूर्ण परिभाषाएँ

रॉस के अनुसार – ‘किशोरावस्था, शैशवावस्था की पुनरावृत्ति है.

क्रो एण्ड क्रो के अनुसार – ‘किशोर ही वर्तमान की शक्ति और भावी आशा को प्रस्तुत करता है.

किलपैट्रिक के अनुसार – ‘किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है.

स्टनले हॉल के अनुसार – पूर्व किशोरावस्था को अत्यंत संवेदात्मक उथल-पुथल झंझा और तनाव की अवस्था कहा जाता है.

 

किशोरावस्था की विशेषताएं (बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं )

किशोरावस्था को जीवन का परिवर्तन काल भी कहा जाता है। किशोरावस्था की निम्न विशेषताएं हैं –

आपको बता दें कि किशोरावस्था (बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं) को शारीरिक विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्पूर्ण काल मन जाता है। क्योंकि इस काल में किशोर तथा किशोरियों में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण शारीरिक परिवर्तन होते है जो यौवन आरम्भ होने के लक्षण होते है।

प्रायः इस अवस्था में किशोरियाँ स्त्रीत्व को तथा पुरुष पुरुषत्व को प्राप्त करते है. तथा भार व लम्बाई में तीव्र वृद्धि दिखाई देती है कुछ किशोरों में दाढ़ी व मोछ की रोमावली दृष्टिगोचर होने लगाती है. एवं वे अपने शरीर,रंग,रूप तथा स्वरूप के प्रति अधिक सजक रहना चाहते हैं. समान्य रूप से किशोर स्वस्थ,सबल तथा उत्साही बनने का प्रयास करते है और किशोरियाँ अपनी आकृति को नारी सुलभ आकर्षण प्रदान करने की इच्छुक होती है।

कालसेनिक के अनुसार, समान्य रूप से इस आयु में बालक एवं बालिका दोनों को अपनी शारीरिक एवं स्वस्थ की अत्यधिक चिन्ता रहती है।”

जबकि किशोरावस्था में बुद्धि का सबसे अधिक विकास होता है। और किशोर-किशोरियों में परस्पर विरोधी मानसिक दशाएँ प्रालक्षित होने लगाती है. उनकी मानसिक जिज्ञासा का विकास हो जाता है और वह सामाजिक,आर्थिक,नैतिक तथा अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं में रूचि लेने लगता है।

प्रायः इस अवस्था में इच्छापूर्ति,निर्वाधा तथा असफलता मिलने के कारण अपराध प्रवृत्ति का विकास हो जाता है. महान मनोवैज्ञानिक वैलेंटाइन के अनुसार, किशोरावस्था अपराध प्रवृत्ति के विकास का नाजुक समय है। यह बाल विकास की विभिन्न अवस्थाएं के अन्तर्गत देखा गया हैं.

सर्वाधिक महत्व किशोरावस्था की विशेषता काम इन्द्रियों की परिपक्वता तथा काम प्रवृत्ति की क्रियाशीलता है. और शैशवावस्था का दबा हुआ यौन आवेश जो बाल्यावस्था में शुप्त अवस्था में रहता है यह पुनः जागृत हो जाता है। तथा सभी किशोर व किशोरियों में ये तीन बातें स्वप्रेम,समलिंगी कामोक्ता और विषमलिंगी कामोक्ता दिखाई देती है.

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