ब्रूनर का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत (Bruner's Coginitive Development Theory)

ब्रूनर का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत | Bruner’s Coginitive Development Theory | free notes

Bruner Theory in hindi : इस लेख में ब्रूनर का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत (Bruner’s Coginitive Development Theory), ब्रूनर के सिद्धान्त की विशेषताएं (Characteristics of Bruner’s Cognitive Development Theory) जानेंगे। जेरोम ब्रूनर एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे और उन्होंने संज्ञानात्मक विकास पर एक नये सिद्धांत का प्रतिपादन किया। CTET UPTET STET और बीएड D.EL.ED के लिये महत्वपूर्ण टॉपिक हैं तो अंत तक ज़रूर पढ़े।

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ब्रूनर का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत (Bruner’s Coginitive Development Theory)

ब्रूनर ने अपने संज्ञानात्मक सिद्धांत के प्रतिपादन करने से पूर्व पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत पर कार्य किया और इसके बाद संज्ञानात्मक सिद्धांत का प्रतिपादन किया। ब्रूनर का सिद्धांत को संरचनात्मक अधिगम सिद्धांत या अन्वेषण सिद्धांत के नाम से भी जानते है।

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अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ब्रूनर (J. S. Bruner) अपने अध्ययनों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे, “बालक का मानसिक विकास एक क्रमिक प्रक्रिया है।” ब्रूनर की दृष्टि से बालक के मानसिक विकास का अपना एक अलग क्रम है। उन्होंने बालक के मानसिक विकास को तीन अवस्था में विभाजित किया है-

  1. सक्रियता अवस्था (Enactive Stage)
  2. दृश्य प्रतिमा अवस्था (Iconic Stage)
  3. सांकेतिक अवस्था (Symbolic Stage)
सक्रियता अवस्था (Enactive Stage)

यह जन्म से 18 माह तक का समय होता है। इस अवस्था में बच्चे अपनी अनुभूतियों को शब्दहीन क्रियाओं द्वारा अभिव्यक्त करते है। जैसे भूख के अनुभूति को रोकर या चिल्लाकर व्यक्त करना। इन क्रियाओं द्वारा बच्चे पर्यावरण से संबंधित स्थापित करते हैं।

दृश्य प्रतिमा अवस्था (Iconic Stage)

यह 18 से 24 माह तक का समय होता है। इस अवस्था में बच्चे अपनी अनुभूति को अपने मस्तिष्क में उनकी एक दृश्य प्रतिमा बनाकर व्यक्त करते हैं.

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सांकेतिक अवस्था (Symbolic Stage)

यह 7 वर्ष की आयु से आगे तक होती है। इस अवस्था में बच्चे अपनी अनुभूतियों को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं और वे प्रतीकों का उनके मूल विकल्पों से संबंध स्थापित करने लगते हैं।

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ब्रूनर के सिद्धान्त की विशेषताएं (Characteristics of Bruner’s Cognitive Development Theory)

  • ब्रूनर का सिद्धान्त बालक के पूर्व अनुभवों तथा नये विषय वस्तु में समन्वय के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने पर बल देता है।
  • विषय वस्तु की संरचना ऐसी हो, कि बच्चे सुगमता व सरलता से सीख सकेें।
  • इस सिद्धान्त के अनुसार विषयवस्तु जो सिखाई जानी है, ऐसे अनुक्रम व बारम्बारता से प्रस्तुत की जाये, जिससे बच्चे तार्किक ढंग से एवं अपनी कठिनाई स्तर के अनुसार सीखते हैं।
  • यह सिद्धान्त सीखने में पुनर्बलन, पुरस्कार व दण्ड आदि पर बल देता है।
  • इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षा बालक में व्यक्तिगत व सामाजिक दोनो गुणों का विकास करती है।

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ब्रूनर के सिद्धान्त की शिक्षा में उपयोगिता (Use of Bruner’s theory in Education)

ब्रूनर के संज्ञानात्मक विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्माण करना चाहिए।

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ब्रूनर ने मानसिक अवस्थाओं का वर्णन किया। इन अवस्थाओं के अनुसार शिक्षण विधियों व प्रविधियों का प्रयोग करना चाहिये।

इनकी अन्वेषण विधि द्वारा छात्रों में समस्या समाधान की क्षमता का विकास किया जा सकता है।

ब्रूनर ने सम्प्रत्यय को समझने पर बल दिया अतः शिक्षक को विषय ठीक से समझाने चाहिये। इसके ज्ञान से छात्र पर्यावरण को समझ कर उसका उपयोग कर सकता है।

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इन्होंने वर्तमान अनुभवों को पूर्व ज्ञान एवं अनुभव से जोड़ने पर बल दिया। इससे छात्रों के ज्ञान को समृद्ध एवं स्थाई बनाया जा सकता है।

ब्रूनर की संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाओं के अनुसार शिक्षक, अपने नियोजन (Planning) क्रियान्वयन (Execution) एवं मूल्यांकन (Evaluation) प्रक्रिया में संशोधन कर बालकों के बौद्धिक विकास में सहायक हो सकते हैं।

ब्रूनर का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत (Bruner's Coginitive Development Theory)
ब्रूनर का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत (Bruner’s Coginitive Development Theory)

ब्रूनर और पियाजे के संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत में समानताएं और असमानताएं (Similarities and Inequalities in the Cognitive Development Theory of Bruner and Piaget)

पियाजे और ब्रूनर दोनों ने संज्ञानात्मक विकास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन दोनों के संज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया में कुछ समानताएं एवं असमानताएं हैं जो निम्न है-

समानताएं (Similarities) असमानताएं (Inequalities)
छात्र पूर्ववर्ती अनुकूलन के आधार पर अधिगम करता है। ब्रूनर विकास को एक सतत प्रक्रिया (continue process) मानते हैं. पियाजे विकास को विभिन्न चरणों की एक श्रंखला मानते हैं।

ब्रूनर अपने सिद्धांत में शिक्षा को ज्यादा महत्व देते हैं. पियाजे अपने सिद्धांत में वातावरण को ज्यादा महत्व देते है।

बालक में स्वाभाविक रूप से भाषा विषय में जिज्ञासा होती है। ब्रूनर भाषा विकास को संज्ञानात्मक विकास का एक महत्वपूर्ण कारक मानता है. प्याजे भाषा विकास को संज्ञानात्मक विकास के एक परिणाम के रूप में मानता है।
बच्चों की संज्ञानात्मक संरचनाएं समय के साथ-साथ विकसित होती है। ब्रूनर के अनुसार संज्ञानात्मक विकास की गति को बढ़ाया जा सकता है. पियाजे के अनुसार बच्चों में संज्ञानात्मक विकास स्तर और परिपक्वता के अनुकूल स्व-गति से होता है।
बच्चे अधिगम प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए अधिगम करते हैं। ब्रूनर वयस्कों एवं अधिक ज्ञान रखने वाले साथियों की अधिगम प्रक्रिया में सहभागिता को महत्व देता है. पियाजे इसे स्वीकार नहीं करता है।

ब्रूनर के अनुसार प्रतिबिंबात्मक चिंतन के पूर्व में अपनाई गई अवस्थाओं के प्रतिनिधित्व बदलते नहीं है. पियाजे के अनुसार ये बदल जाते हैं।

संज्ञानात्मक विकास का अंतिम चरण प्रतीकों/संकेतों/चिन्हों के अभिग्रहण तक चलता है और इन्हें प्रमुखता दी गई है। ब्रूनर के सिद्धांत में बालक के विकास की तीन अवस्थाएं हैं. पियाजे के सिद्धांत में चार अवस्थाएं हैं।

ब्रूनर के अनुसार संज्ञानात्मक विकास की गति को बढ़ाया जा सकता है.

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निष्कर्ष :- हम आशा करते है आपको ब्रूनर का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत (Bruner’s Coginitive Development Theory) समझ में आ गया होगा। अपने सुझाव और प्रश्न कमेंट में लिखें। आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहें है जरूर लिखें। स्टडी मटेरियल और योजनाओं से जुड़ी जानकरी के लिये allindiafreetest.कॉम के HOME PAGE पर विजिट करें।

धन्यवाद।