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नेतृत्व का सिद्धांत (Netratva Ka Siddhant in Hindi)

Netratva Ka Siddhant in Hindi: इस आर्टिकल में महत्वपूर्ण टॉपिक नेतृत्व का सिद्धांत के बारे में बताया गया है. नेतृत्व तथ्यों के विभिन्न पहलुओं से संबंधित स्पष्टीकरण देने वाले अनेक सिद्धांत हैं। नेतृत्व के कुछ सिद्धांतों की व्याख्या हम नीचे निम्नलिखित प्रकार से कर रहे हैं.

नेतृत्व का सिद्धांत- Netratva Ka Siddhant

कुछ विद्वानों का मानना है कि नेतृत्व व्यक्ति की विलक्षण प्रतिभाओं का ही परिणाम है। इसके अनुसार कुछ व्यक्तियों में कुछ विशिष्ट योग्यताएं तथा गुण होते हैं जो दूसरे से अलग होते हैं।

वे अपने विशिष्ट गुणों के कारण समूह के अन्य सदस्यों को अपना अनुयाई (follower) बनाकर उसका नेता स्वयं बन जाते हैं। प्रायः इसे गुण सिद्धांत भी कहते हैं।

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दरअसल इस सिद्धांत के समर्थकों की मान्यता है कि नेतृत्व का विकास तभी होता है।

जब किसी व्यक्ति के समस्त अथवा अधिकांश नेतृत्व गुणों का संतुलित विकास होता है। तो कोई एक दो गुण बहुत अधिक विकसित होते हैं तथा कुछ अन्य अपेक्षाकृत उतने ही विकसित हो पाते हैं तो ऐसे व्यक्ति का नेतृत्व संकट में पड़ जाता है।

1. नेतृत्व का लक्षण सिद्धांत (Netratva Ka Siddhant)

यह केली द्वारा सुझाया गया एक प्राचीन सिद्धांत है नेतृत्व सफलता से संबंधित निजी विशेषताएं जैसे शारीरिक व्यक्तित्व एवं मानसिक को वर्गीकरण करने हेतु प्रयासरत व्याख्यापरक लक्षण जिनका श्रेय अन्वेषणकर्त्ताओं ने नेताओं को दिया है इनके कुछ पहलू है जैसे लम्बाई, भार, डील-डौल, अच्छा स्वास्थ्य, ऊर्जा का उच्च स्तर, अच्छी वेशभूषा, चतुराई, स्काॅलरशिप, अच्छा निर्णय एवं परिणाम, सूक्ष्म दृष्टि, रचनात्मक, प्रधानता, दृढ़ता, आत्मविश्वास, अभिलाषा एवं अन्य। क्योंकि समस्त व्यक्ति विशेष में यह गुणवत्ता नहीं होती केवल जिनमें यह गुणवत्ता नहीं होती केवल जिनमें यह तत्व होगे वही शक्तिशाली नेता कहलाएंगें।

यद्यपि नेतृत्व का लक्षण सिद्धांत निम्न सीमाबंधनों से प्रभावित हैं

1. लक्षण सिद्धांत को वैध सिद्धांत के समान स्वीकार नहीं किया।

2. अन्वेषण अध्ययन से उद्गमित योग्य लक्षण का कोई संग्रह नहीं है जो कि नेताओं एवं अनेताओं का सफलतापूर्वक अंतर कर सके।

3. इन लक्षणों का आंकलन करना कठिन हैं। अतएव नेताओं एवं अनुचरों के बीच अंतर हमेशा संभव नहीं हैं।

यह सीमाबाधाएं अन्वेषणकर्ता को लक्षण के अध्ययन को त्याग कर नेतृत्व को समझना सिखाती हैं एवं अपने प्रयास नेताओं के आचरण को समझने के लिए देते हैं। अतएव नेतृत्व के व्यवहारात्मक सिद्धांत का अस्तित्व हुआ।

2. नेतृत्व का व्यवहार सिद्धांत (Netratva Ka Siddhant)

नेतृत्व के व्यवहारात्मक सिद्धांत के अनुसार नेतृत्व का वर्णन नेता क्या हैं कि अपेक्षा वह क्या करता है से होता हैं। अन्य शब्दों में नेतृत्व का समीकरण उनके व्यवहार के संदर्भ में अनुचरों से संबंधित हो सकता है। व्यवहारात्मक सिद्धांत अधिकतर अन्वेषण अध्ययन के अनुसार दर्शाए जाते हैं।

व्यवहारात्मक सिद्धांत कम से कम दो प्रकार से लक्षण सिद्धांत से भिन्न है। पहला, निजी लक्षण की अपेक्षा वास्तविक मुखिया आचरण मुख्य बिन्दु होता है। दूसरा, जबकि अधिकतर लक्षण सिद्धांत मुखिया एवं गैर-मुखिया के बीच अंतर बताते हैं, व्यवहारात्मक सिद्धांत अनुचरों के प्रदर्शन एवं संतोष को प्रभावित करने वाले अनेक प्रकार के व्यवहारों को निर्धारित करने का प्रयास करते हैं।

दो महत्वपूर्ण व्यवहारात्मक सिद्धांत हैं ओहियों प्रदेश विश्वविद्यालय अध्ययन एवं मिशीखन विश्वविद्यालय।

3. फीडलर का प्रासंगिक प्रतिरूप (Netratva Ka Siddhant)

नेतृत्व के प्रासंगिक सिद्धांत के अनुसार नेतृत्व की सफलता मुखिया के कार्य करने की स्थिति पर निर्भर करती है। फ्रेड ई. फीलडर ने नेतृत्व के प्रासंगिक प्रतिरूप का विकास किया। उनके अनुसार, मुखिया की कौशलता निम्न तीन तथ्यों पर निर्भर करती हैं–

1. मुखिया-अनुचर सम्बन्धक अर्थात् अनुचरों के विश्वास, आत्मविश्वास एवं मुखिया की प्रतिष्ठा का स्तर।

2. कार्य ढाँचा, अर्थात् अधीनस्थों द्वारा किए गए कार्यों की प्रकृति।

3. सामाजिक योग्यता, अर्थात् संगठन के मुखिया द्वारा प्राप्त शक्ति, अवस्था या वस्तुस्थिति से संबंधित स्तर।

अपने समूह को प्रभावित करने की सबसे अनुकूल स्थिति मुखिया की वह है जब वह सदस्यों द्वारा पसंद किए जाएं, उच्चतम निर्माण के कार्य किए जाएं एवं संगठन के मुखिया के पास अपने पद से जुड़ी हुई पर्याप्त शक्तियाँ हों। दूसरी ओर, मुखिया के लिए सबसे प्रतिकूल स्थिति यह है जब उन्हें कोई पसंद न करे, कार्य अधिक अव्यवस्थित हों एवं मुखिया के पद से अल्प शक्ति जुड़ी हों।

4. पथ-लक्ष्य नेतृत्व सिद्धांत (Netratva Ka Siddhant)

राबर्ट हाउस ने मार्टिन इवान्स द्वारा प्रथम प्रस्तुत नेतृत्व के पथ लक्ष्य सिद्धांत का विकास किया। यह सिद्धांत प्रोत्साहन के अनुमानित सिद्धांत पर आधारित है। यह सिद्धांत नेतृत्व के चार विभिन्न प्रकार की शैलियों का वर्णन करता हैं; निर्देश नेतृत्व (अधीनस्थों में सहकारिता के भाव विकसित करने की अपेक्षा उन्हें निर्देश देना), सहयोगात्मक नेतृत्व (मातहतों से मित्रवत तथा पहुंचनीय होना), सम्मिलित नेतृत्व (निर्णय लेने से पहले अधीनस्थों के सुझाव लेना) एवं कार्यसिद्धि प्राप्त नेतृत्व (अधीनस्थों के लिए चुनौतीपूर्ण लक्ष्य एवं नियुक्ति सीमित करना। पथ-लक्ष्य सिद्धांत प्रमाणित करता है कि मुखिया अपने अनुचरों के प्रोत्साहन कार्य करने की योग्यता एवं उनके संतोष को प्रभावित करने स्वयं प्रभावशाली बन जाते है। प्रदर्शन एवं लक्ष्य की चाह से संबंधित अनुमानताओं को प्रभावित करके मुखिया कर्मचारियों को प्रोत्साहित करते हैं। अधीनस्थ संतुष्टि की अनुभूति करते हैं जब वह विश्वस्त होते हैं कि उनकी कार्य प्रदर्शन अपेक्षित परिणाम देगा। वह कठिन परिश्रम द्वारा अपने लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम होंगे।

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निष्कर्ष : उम्मीद है आपको हमारा यह लेख नेतृत्व का सिद्धांत- Netratva Ka Siddhant पसंद आया होगा. ऐसी रोचक जानकारी पाने के लिये हमारे वेबसाइट पर विजिट करतें रहें और अपना टॉपिक सर्च करके पढ़ें.

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1 thought on “नेतृत्व का सिद्धांत (Netratva Ka Siddhant in Hindi)”

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